काेराेना महामारी में दानवीर व दान राशि दाेनाें ही घट गए। भूख व बीमारी से गाेवंश भी मरने लगे। ऐसे में श्रीकृष्ण आदर्श गोशाला समिति ने दान गाेवंश का जीवन दान राशि के भराेसे नहीं छाेड़ने की ठानी और आत्मनिर्भर बनाने के रास्ते तलाशे। इसी कड़ी में पहला सफल कदम गायाें के गाेबर व बुरादा मिलाकर लकड़ी के गुटके बनाना शुरू कर दिए। इसके लिए समिति ने गोशाला परिसर में मशीन स्थापित की है। गाेबर व बुरादे काे मिलाकर तैयार लकड़ी बाजार में 6 रुपए प्रति किलाे तक बिक रही है।
राेजाना 800 किलाे तक तैयार हाे जाती है लकड़ी
गाेशाला समिति ने इस समय एक ही मशीन लगाई है। इससे राेजाना 800 किलाे तक लकड़ी तैयार हाेती है। इस मशीन पर 3 कारीगराें की जरूरत पड़ती है। लकड़ी बनाने में प्रयाेग हाेने वाली सामग्री में 80 प्रतिशत गाेबर व 20 प्रतिशत लकड़ी का बुरादा मिलाया जाता है। कारीगर सुरेश ने बताया कि गुटके तैयार कर इन्हें धूप में सुखाया जाता है।
इस समय श्मशान घाट में हाे रही प्रयाेग
इन दिनाें में इस लकड़ी का ज्यादा प्रयाेग श्मशान घाटाें में हाे रहा है। गोशाला समिति प्रधान कंवरभान ने बताया कि श्मशान घाट के अलावा इसका प्रयाेग ईंट भट्टों व फैक्ट्रियों में लगे बॉयलर में हाेता है। इनमें काम कम हाेेने के कारण अभी प्रयाेग हाे रहा है। एक चिता में पेड़ाें वाली लकड़ी 500 किलाे तक लगती है, जबकि गाेबर की 300 किलाे लकड़ी ही पर्याप्त हाेती है।
आर्थिक मंडी झेल रही संस्थाओं के लिए मिसाल
लॉकडाउन व कोरोना महामारी में रोजगार भी कम हुए हैं और संस्थाएं भी आर्थिक मंदी से गुजर रही हैं। ऐसे समय में श्री कृष्ण आदर्श गौशाला सभी के लिए एक मिसाल बनी है। आर्थिक मंदी से उबरने की यह सकारात्मक पहल है। इससे गोशाला भी आत्म निर्भर बनी है और अन्य काे भी बनने का संदेश मिला है।
समाज सेवी स्व. राजीव दीक्षित से हुए प्रेरित
गोशाला के सचिव विनोद मित्तल ने बताया कि गोशाला आर्थिक मंदी से गुजर रही है। समाज सेवी राजीव दीक्षित से प्रेरित होकर गाेशाला काे आत्मनिर्भर बनाने की ठानी। मित्तल ने बताया कि समाज सेवी भाई राजीव दीक्षित का जन्म 30 नवंबर, 1967 को यूपी के अलीगढ़ के नाह गांव में हुआ था। उनकी मृत्यु भी 30 नवंबर को ही हुई। भाई राजीव ने स्वदेशी वस्तुओं को ही अहमियत देने के लिए जाेरदार आंदाेलन चलाए।
73 साल पुरानी गोशाला में अब 1800 गाय
प्रधान कंवरभान ने बताया कि यह गोशाला 73 साल से भी ज्यादा पुरानी है। इसकी स्थापना 1947 में हुई थी। इस समय इसमें 1800 गाय हैं। अभी 3 माह में बीमारी व भूख से 80 से ज्यादा गाेवंश की माैत हुई है। भविष्य में ऐसी नौबत न आए इसलिए ही गाेबर से तैयार गुटके तैयार करने वाली एक मशीन लगाई है। जल्दी ही संख्या बढ़ाएंगे और गोमूत्र से दवाइयां बनाने के साथ-साथ अन्य चिकित्सा सुविधाएं भी शुरू की जाएंगी।
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