लॉकडाउन में बाहर नहीं जा रहे टमाटर, शिमला मिर्च के भाव भी गिरे

इस समय सब्जी उत्पादक किसान अपने खेतों में व्यस्त हैं, लेकिन सब्जी के दाम कम होने से किसानों के हाथ मायूसी ही लग रही है। सब्जी के दामों में भारी गिरावट किसान कोरोना वायरस को मान रहे हैं क्योंकि लॉकडाउन की वजह से बहुत ही कम सब्जी की गाड़ियां दूसरे प्रदेशों की सब्जी मंडियों में जा पा रही हैं। यहां से टमाटर की फसल की अधिकतर खपत दिल्ली, देहरादून, हांसी व हिसार की बड़ी सब्जी मंडी में होती है, लेकिन लॉकडाउन के चलते वहां पर अभी सब्जी की सप्लाई सही प्रकार से नहीं हो पा रही जिस कारण टमाटर के दामों में इस बार भारी गिरावट आई है। गत वर्ष आजकल टमाटर का भाव 500-600 (25 केजी) क्रेट था। लेकिन इस बार 100 से 120 रुपए है। बाहर भेजने पर किराया व अन्य खर्च जोड़ करीब 50-60 रुपए प्रति क्रेट खर्च आ जाता है। किसान जसबीर, साहिल, अशोक कुमार, दलीप सिंह, अश्वनी, बृजपाल, बनारसी व सतीश कुमार का कहना है कि टमाटर की फसल खेत में लाल हो चुकी है। गत वर्ष टमाटर के दाम काफी अच्छे थे इसलिए अधिक एरिया में टमाटर की फसल लगाई है। क्षेत्र में ऐसे किसानों की संख्या भी कम नहीं जिन्होंने ठेके पर भूमि लेकर टमाटर की फसल लगाई है, लेकिन टमाटर के कम दाम के चलते ठेके के पैसे तो दूर फसल के ऊपर आया लागत मूल्य भी पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा। टमाटर के कम दाम के चलते वह काफी परेशान है।

भाव मिले थे अच्छे, इसलिए नहीं कराया फसल का पंजीकरण

किसानों का कहना है कि गत वर्ष टमाटर के भाव अच्छे मिले थे इसलिए सरकार की ओर से चलाई गई भावांतर भरपाई योजना के तहत उन्होंने पंजीकरण नहीं करवाया। अगर वह पंजीकरण करवाते तो काफी हद तक नुकसान की भरपाई हो सकती थी क्योंकि योजना के तहत टमाटर का भाव सरकार ने 500 क्विंटल तय किया हुआ है। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इस बार टमाटर के दाम इतने कम मिलेंगे। अबकी बार तो टमाटर की फसल के ऊपर आया लागत मूल्य भी पूरा नहीं हो पाएगा। कम दाम के चलते घर की आर्थिक व्यवस्था भी बिगड़ेगी।

2 रुपए किलो शिमला मिर्च की फसल व्यापारी खेतों में आकर खरीद रहे

क्षेत्र मेें शिमला मिर्च की फसल औने-पौने दामों पर बिक रही है। बेहद कम दामों पर बिकने के कारण किसान परेशान हैं। कोरोना वायरस की बीमारी के प्रकोप के चलते देश की बड़ी सब्जी मंडियां बंद होने के कारण शिमला मिर्च की फसल को किसान दूसरे प्रदेशों से आए व्यापारी को कम दामों पर बेचने के लिए मजबूर हैं। किसानों की मजबूरी का दूसरे प्रदेशों से आये व्यापारी जमकर फायदा उठा रहे हैं। किसान सुखबीर सिंह, रामकुमार व प्रदीप आदि ने बताया कि रादौर क्षेत्र के लगभग 20 से अधिक गांवों में हजारों एकड़ में हर वर्ष शिमला मिर्च की खेती की जाती है। शिमला मिर्च की खेती पर प्रति एकड़ लगभग 50 से 60 हजार रुपए का खर्च आता है। दिल्ली, देहरादून, पंजाब, राज्यस्थान, चंडीगढ़ व उत्तरप्रदेश आदि से भारी संख्या में व्यापारी रादौर क्षेत्र में शिमला मिर्च खरीदने के लिए आते रहते हैं। शिमला मिर्च की फसल आमतौर पर 10 से 20 रुपए किलो तक बिकती रही है, लेकिन इस बार मात्र 2 रुपए किलो शिमला मिर्च की फसल व्यापारी खेतों मेंं आकर खरीद रहे हैं। इतने कम दामों पर शिमला मिर्च की फसल बिकने से किसानों की हालत पतली हो गई है। किसानों ने बताया कि कम दामों पर शिमला मिर्च की फसल बिकने से उन्हें भारी घाटा हो रहा है। उन्हें लागत मूल्य भी मिल पाना मुश्किल हो गया है। अधिकतर किसानों ने ब्याज पर पैसे लेकर शिमला मिर्च की खेती की है जिससे किसान कर्ज के बोझ में दब जाएगा। किसानों की मांग है कि सरकार किसानों की सब्जी की फसल को बेचने के लिए दिल्ली व अन्य बड़ी सब्जी मंडियों की व्यवस्था करे। अन्यथा शिमला मिर्च की फसल की तरह दूसरी सब्जी की फसलें भी इसी प्रकार औने पौने दाम पर बिकेंगी और किसान आर्थिक रूप से बर्बाद हो सकता है।



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Tomatoes, capsicum prices not going out in lockdown also fell


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